ब्रिटेन (Britain) के Armed Forces Minister जेम्स हीपी (James Heappey) ने तो गुरुवार को सुबह ही अपने एक इंटरव्यू में कहा था कि उन्हें पहले ही वो लाइनें लिख कर भेज दी गई थीं, जो काबुल एयरपोर्ट पर हमला (Kabul Airport Blast) होने के बाद उन्हें मीडिया के सामने पढ़नी थीं. अमेरिका (US) और ब्रिटेन ही नहीं, NATO देशों की सेनाओं को भी आतंकवादी हमले का अलर्ट 24 घंटे पहले ही मिल गया था.
इस हमले की जिम्मेदारी आतंकवादी संगठन ISIS-खुरासान ने ली है. ये आतंकवादी संगठन ISIS की ही एक शाखा है और इसमें खुरासान का मतलब गजवा ए हिंद से है. यानी भारत में इस्लामिक राज स्थापित करना. ये संगठन तालिबान से भी ज्यादा कट्टर इस्लाम में विश्वा.स रखता है और मानता है कि असली जेहाद वो कर रहा है, तालिबान नहीं. इसलिए इस आतंकवादी संगठन द्वारा किए गए इन हमलों के पीछे दो मकसद हो सकते हैं.
पहला मकसद अमेरिका को चुनौती देना हो सकता है, जिसने इस तरह के संगठनों को खत्म करने के लिए 20 साल तक लड़ाई लड़ी. इसलिए आज बड़ा सवाल ये है कि क्या अमेरिका जैसा देश इस हमले के बाद भी एयरपोर्ट के अंदर छिप कर बैठा रहेगा.
हालांकि इसे अफगानिस्तान का दुर्भाग्य ही कहेंगे कि अफगानिस्तान में अभी कोई सरकार नहीं है, कोई पुलिस नहीं है और कोई सेना नहीं है. सड़कों पर अगर हथियारों के साथ कोई घूम रहा है तो वो हैं तालिबान के आंतकवादी, जिन्हें हमला करने का तो अनुभव है लेकिन हमले के बाद स्थितियां संभालने का कोई अनुभव नहीं है.